कार्यक्रम संयोजक और पूर्व मुख्य नेत्र अधिकारी दिनेश शर्मा ने बताया कि नेत्रदान केवल मृत्यु के बाद ही संभव है। नेत्रों को मृत्यु के 6 से 8 घंटे के भीतर प्राप्त करना आवश्यक है, ताकि कॉर्निया की गुणवत्ता बनी रहे। उन्होंने कहा, "जितनी जल्दी नेत्रदान की सूचना दी जाएगी, उतनी ही जल्दी नेत्र बैंक की टीम नेत्रों को सुरक्षित कर प्रत्यारोपण के लिए तैयार कर सकती है।" सूचना देने के लिए नजदीकी अस्पताल या 112 नंबर पर संपर्क किया जा सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि नेत्रदान परिवार की सहमति से उनकी पसंदीदा जगह, जैसे घर, अस्पताल या अन्य स्थान पर किया जाता है। नेत्रदान और नेत्र प्रत्यारोपण में अंतर है, और यह केवल मानव शरीर से प्राप्त कॉर्निया के जरिए ही संभव है। उन्होंने जोर देकर कहा, "नेत्रदान महादान है। लोगों को इसके प्रति जागरूक होने की जरूरत है।"
समाजसेवी राजेंद्र शर्मा ने कहा कि सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से नेत्रदान का संदेश लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि एक जोड़ी नेत्रों से दो से चार लोगों को रोशनी दी जा सकती है। नेत्रदान से चेहरे की सुंदरता पर कोई असर नहीं पड़ता और परिवार को अंतिम संस्कार में किसी भी तरह की परेशानी नहीं होती।
कॉलेज के प्रबंधक और प्रिंसिपल डॉ. अशोक सैनी ने जागरूकता टीम का स्वागत किया और आश्वासन दिया कि स्कूल और कॉलेज के सभी विद्यार्थियों को नेत्रदान के बारे में जानकारी दी जाएगी। उन्होंने कहा कि नेत्रदान पखवाड़े में संस्थान हर संभव सहयोग करेगा।
समाजसेवी जगत सिंह गिल ने अपने संबोधन में नेत्रदान की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सभी धर्म नेत्रदान का समर्थन करते हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अपने प्रियजनों की आंखें दान करके इस महायज्ञ में योगदान दें। उनकी सामाजिक संस्था भी लोगों को नेत्रदान के लिए प्रेरित करेगी।
कार्यक्रम में स्कूल और कॉलेज के स्टाफ सदस्यों और विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। पूर्व नेत्र अधिकारी दिनेश शर्मा ने आर.आई.ओ. और स्वास्थ्य विभाग की ओर से सभी का धन्यवाद किया।