15 साल पुराना विवाद समाप्त, सभी मंजिलें होंगी ध्वस्त
इससे पहले, 5 अक्टूबर 2024 को कोर्ट ने मस्जिद की ऊपरी तीन मंजिलों को अवैध घोषित कर उन्हें गिराने का आदेश दिया था। शनिवार को हुई सुनवाई में निचली दो मंजिलों को भी अवैध करार देते हुए पूरे ढांचे को ध्वस्त करने का फैसला सुनाया गया। यह मामला पिछले 15 सालों से कोर्ट में चल रहा था, जिसमें 50 से अधिक सुनवाई हो चुकी थीं। अब इस फैसले के साथ यह विवाद समाप्त हो गया है।
वक्फ बोर्ड और मस्जिद समिति दस्तावेज पेश करने में विफल
संजौली के स्थानीय निवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता जगत पाल ने बताया कि वक्फ बोर्ड और मस्जिद समिति जमीन के मालिकाना हक, स्वीकृत नक्शे या किसी भी वैध अनुमति के दस्तावेज पेश नहीं कर सके। वक्फ बोर्ड ने एक दशक से अधिक समय से जमीन पर स्वामित्व का दावा किया था, लेकिन कोर्ट में कोई ठोस सबूत नहीं दे सका।
बीते साल प्रदर्शन और सांप्रदायिक तनाव
यह विवाद पिछले साल तब और गहरा गया था, जब 31 अगस्त 2024 को शिमला के मेहली में सांप्रदायिक झड़प हुई। इसके बाद 1 सितंबर से स्थानीय निवासियों और हिंदू संगठनों ने मस्जिद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। 11 सितंबर को प्रदर्शन हिंसक हो गया, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड तोड़ दिए और पुलिस से झड़प हुई। इस दौरान लाठीचार्ज और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया गया, जिसमें 10 लोग घायल हुए, जिनमें 6 पुलिसकर्मी शामिल थे।
मस्जिद का इतिहास और अवैध निर्माण
मस्जिद का निर्माण 2007 में शुरू हुआ था, और 2010 में स्थानीय लोगों ने इसे अवैध बताते हुए नगर निगम कोर्ट में शिकायत दर्ज की थी। वक्फ बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि 2012 तक मस्जिद एक मंजिला थी, लेकिन बाद में बाकी मंजिलें अवैध रूप से बनाई गईं, जिसकी जानकारी बोर्ड को नहीं थी। कांग्रेस विधायक अनिरुद्ध सिंह ने पिछले साल विधानसभा में कहा था कि मस्जिद हिमाचल सरकार की जमीन पर बनी है, और नगर निगम ने कई बार नोटिस जारी किए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
अब क्या होगा?
कोर्ट के आदेश के अनुसार, वक्फ बोर्ड और संजौली मस्जिद समिति को अपने खर्चे पर मस्जिद को ध्वस्त करना होगा। हालांकि, इस फैसले के खिलाफ वक्फ बोर्ड के हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की संभावना बनी हुई है। इस मामले ने शिमला में सामाजिक तनाव को बढ़ा दिया है, और दोनों समुदायों के बीच शांति बनाए रखना अब एक बड़ी चुनौती है।