कविता केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं होती, वह समय, समाज और आत्मा की गहराइयों में उतरने वाली यात्रा होती है। हिंदी साहित्य की समकालीन धारा में एक ऐसी ही सशक्त रचना उभरकर सामने आई है — “एक बूंद”, जो कवि, चिंतक और शिक्षाविद डॉ० नवलपाल प्रभाकर दिनकर द्वारा रचित है।
हिंदी कविता की आत्मा को जब शब्दों में उतारने की कोशिश होती है, तब कलम से केवल रचना नहीं, बल्कि आत्मचिंतन की धारा बह निकलती है। ऐसी ही एक अनोखी साहित्यिक अभिव्यक्ति है डॉ. चंद्रदत्त शर्मा की कविता "कविता की आत्मा", जो न केवल एक रचना है, बल्कि हिंदी काव्य की गहराइयों में डूबकर निकाला गया एक जीवन-दर्शन है।
पानी, जो हमारे जीवन का आधार है, और जिसे हम कभी नज़रअंदाज कर देते हैं, उस पानी की बूंद की ताकत को डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर ने अपनी कविता "पानी की बूंद" में बड़े ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है। यह कविता न केवल पानी की बूंद के शारीरिक रूप की चर्चा करती है, बल्कि जीवन, संघर्ष और परिवर्तन के गहरे अर्थों को भी उजागर करती है।
प्रसिद्ध कवि डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर की काव्य रचना "मधुर मिलन" एक अद्वितीय साहित्यिक रचनात्मकता का उदाहरण है। यह कविता प्रेम, प्रकृति और जीवन के सुंदर संगम को चित्रित करती है। इसमें कवि ने धरती और आकाश के बीच एक गहरी और रोमांटिक जुगलबंदी को प्रस्तुत किया है। कविता के शब्दों में जैसे कोई जादू है, जो पाठकों को एक अद्वितीय भावनात्मक अनुभव से जोड़ता है।
समकालीन हिंदी साहित्य में व्यंग्य और सामाजिक आलोचना को लेकर एक नई हलचल मचाने वाली कहानी *‘जंगल में महासभा’* ने पाठकों को न केवल सोचने पर मजबूर कर दिया है, बल्कि जंगल के बहाने हमारे लोकतंत्र के सबसे नाज़ुक सवालों को बड़े प्रभावी अंदाज़ में उठाया है। इस कहानी के रचयिता डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर हैं, जिनकी लेखनी सामाजिक यथार्थ को प्रतीकों और जीव-जंतुओं के माध्यम से प्रस्तुत करने में विशेष दक्ष मानी जाती है।
हिंदी साहित्य के यथार्थवादी लेखक डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर की कहानी 'मांग' ने मानवता और प्रेम की गहरी भावनाओं को प्रस्तुत किया है। यह कहानी न केवल एक युवा प्रेमी जोड़े की कड़ी परीक्षा की कहानी है, बल्कि यह सामाजिक दबावों और पारिवारिक मान्यताओं के बीच मनुष्य की भावनाओं की जटिलता को उजागर करती है।
डॉ० नवलपाल प्रभाकर दिनकर की नवीन कविता "बचपना" इन दिनों साहित्यिक जगत में विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। यह रचना न केवल भावनात्मक स्मृतियों से जुड़ती है, बल्कि ग्रामीण भारत के पारंपरिक जीवन, ऋतुओं की मिठास और बालमन की मासूम शरारतों को भी बड़ी ही संवेदनशीलता से प्रस्तुत करती है।